दिल्ली की दिवाली में इस बार सिर्फ और सिर्फ ग्रीन पटाखे, सरकार का विशेष अभियान
दीवाली पर हर साल होने वाले प्रदूषण को ध्यान में रखते सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस बार सख्त रुख अपनाया है. यही वजह है कि कोर्ट ने दिल्ली में रॉकेट और बॉम्ब सरीखे पटाखों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है.
दिल्ली सरकार (Delhi government) ने प्रदूषण के खिलाफ अभियान शुरू किया हुआ है. इस अभियान के तहत सरकार ने इस बार की दिवाली को भी प्रदूषण मुक्त बनाने का फैसला किया है. राज्य सरकार ने दिवाली पर सिर्फ ग्रीन पटाखों (Green crackers) के इस्तेमाल की अनुमति दी है. लोगों में सिर्फ ग्रीन पटाखे जलाने और अन्य तरह के पटाखों पर रोक के लिए सरकार 3 नवंबर से विशेष अभियान भी चलाने जा रही है.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बताया कि दीपावली के त्योहार को देखते हुए सरकार 3 नवंबर से पटाखे विरोधी अभियान शुरू करेगी. उन्होंने कोविड-19 महामारी की स्थिति की गंभीरता पर विचार करते हुए लोगों से पटाखे नहीं जलाने का आग्रह किया है.
- कोर्ट ने रॉकेट, बम और तेज आवाज करने वाले पटाखों पर लगाई रोक!
- कोर्ट ने जिन ग्रीन पटाखों को मंजूरी दी है उनमें अनार और फुलझड़ी शामिल हैं!
- दिल्ली पुलिस ने पटाखे विक्रेताओं पर नजर रखने के लिए विशेष टीम बनाई है!
- दिल्ली पुलिस की टीम का काम यह सुनिश्चत करने का होगा कि सभी विक्रेता सिर्फ ग्रीन पटाखे ही बेचें!
- सरकार के अनुसार ग्रीन पटाखे समान्य पटाखों की तुलना में 30 फीसदी कम प्रदूषण फैलाते हैं!
- ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल से हम हवा में फैलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड को काफी हद तक कम कर सकते हैं!
- केंद्र सरकार ने भी इस बार लोगों से ग्रीन पटाखे ही इस्तेमाल करने का अनुरोध किया है!
रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ
प्रदूषण पर कंट्रोल लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने इन दिनों ‘रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ’ अभियान चलाया हुआ है. राजधानी की सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में यह अभियान चलाया जा रहा है. और 2 नवंबर तक यह शहर के सभी 272 वार्डों तक पहुंच जाएगा.
बता दें कि दिल्ली में इस बार दिवाली से पहले हवा की क्वालिटी खराब हो गई है. प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार कदम भी उठा रही है.
ग्रीन पटाखे क्या हैं- ग्रीन पटाखे होते क्या हैं?
ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है.
सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं.
नीरी के चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर साधना रायलू कहती हैं, “इनसे जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी. 40 से 50 फ़ीसदी तक कम. ऐसा भी नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा. पर हां ये कम हानिकारक पटाखे होंगे.”
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डॉक्टर साधना बताती हैं कि सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था.
ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं. नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे.
ग्रीन पटाखे कैसे कैसे होते है ?
डॉक्टर साधना बताती हैं कि उनके संस्थान ने ऐसे फॉर्मूले तैयार किए हैं जिसके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैस उसमें घुल जाएगी.
इन ग्रीन पटाखों की बेहद ख़ास बात है जो सामान्य पटाखों से उन्हें अलग करती है. नीरी ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं.
- पानी पैदा करने वाले पटाखेः ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे. नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीज़र का नाम दिया है. पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है. पिछले साल दिल्ली के कई इलाक़ों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर पानी के छिड़काव की बात कही जा रही थी.
- सल्फ़र और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखेः नीरी ने इन पटाखों को STAR क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ़ थर्माइट क्रैकर. इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं. इसके लिए ख़ास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है.
- कम एल्यूमीनियम का इस्तेमालः इस पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है. इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है.
- अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारण गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे.
दिवाली पर पटाखों के कारण होने वाला वायु प्रदूषण
दिल्ली जोकि भारत की राजधानी है, वह विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में एक है। यहाँ कि हवा यातायात, उद्योगों तथा बिजली उत्पादन गृहों से निकलने वाले धुएं और हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब जैसे प्रदेशों के कृषि अपशिष्ट जलाने के कारण पहले से ही दोयम दर्जे की है।
जब दिवाली का त्योहार निकट आता है तो यहां की दशा और भी ज्यादा दयनीय हो जाती है क्योंकि हवा में प्रदूषण की मात्रा काफी ज्यादे बढ़ जाती है। इसके साथ ही ठंड का मौसम होने के कारण पटाखों से निकलने वाले तत्व धुंध में मिलकर इसे और भी ज्यादे खतरनाक और प्रदूषित बना देते हैं। जिनके कारण फेफड़े तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के 2015 के राष्ट्रीय गुणवत्तासूचकांक के आकड़ो से पता चला था कि लगभग हमारे देश आठ राज्य दिवाली की रात होने वाली आतिशबाजी के कारण सबसे ज्यादे प्रभावित होते हैं। जिससे इनके क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता काफी निचले स्तर पर पहुंच जाती है। सिर्फ दिल्ली में ही यह आकड़ा PM 10 तक पहुंच जाता है जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जो मानक तय किया गया है वह इससे लगभग 40 गुना कम है। यह प्रदूषण स्तर काफी ज्यादे है, यही कारण है की हाल के दिनों में श्वसन सम्बंधित बीमारियों में काफी वृद्धि देखने को मिली है।
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